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CONTENTS
|शिक्षा, समाज एवं वैश्विक मूल्य|मानवीय अस्तित्व का विश्लेषण| वैश्विक मूल्य-निर्धारण के आधार| योग के लक्ष्य तथा संभावना|योग की वैश्विकमूल्य के रूप में भूमिका तथा आयाम|Strategy for Understanding|

Yoga & Value - 2

योग – एक वैश्विक मूल्य

Yoga as a Global Value

अन्य लिंक : | Concept, Definition & Types of Value |Yoga as a Value & Yoga as Practice |Past Developments and Future Horizon|योग – एक वैश्विक मूल्य |

शिक्षा, समाज एवं वैश्विक मूल्य

भूमिका (Introduction) :

          मनुष्य समाज की इकाई है। समाज राष्ट्र की इकाई हो सकता है तथा विभिन्न राष्ट्रों को मिलाने पर विश्व का निर्माण होता है। यह विश्व का राजनैतिक(Political) दृष्टि से विवेचन है। विश्व की मान्यता में मनुष्य के इतरेतर अन्य घटक भी समाहित होते हैं। 

वैश्विक मूल्य की अवधारणा (Notion of Global Value) :  

          वैश्विक मूल्य की अवधारणा में हम उसे वैश्विक मूल्य मानेंगे, जो मानव की लोक यात्रा में उसको व्यष्टि से समष्टि तक ले जाने में सक्षम होता है। इस दृष्टि से वैश्विक मूल्य वे मूल्य या मूल्यों का समूह है जो मानव के प्रत्येक पक्ष पर प्रभाव डालने में सक्षम होता है तथा जो उसके व्यक्तित्व एवं अस्तित्व के सभी पक्षों को पल्लवित कर उसे अस्तित्व के चरम संभावना तक ले जाने में सक्षम हो।

मानवीय अस्तित्व का विश्लेषण अस्तित्व के पक्ष

मानवीय अस्तित्व का विश्लेषण अस्तित्व के पक्ष

(Analysis of Human Personality) 

          प्रत्येक व्यक्ति के लिये कुछ कुछ प्राप्तव्य होते हैं जिन्हें वह अपने जीवन में पाना चाहता है। इनकी प्राप्ति उसके अस्तित्व के लिये अनिवार्य हो सकती है जैसे भोजन, वस्त्र, आवास आदि। अथवा कुछ ऐसे भी मूल्य हो सकते हैं जो कि उसे मानसिक सन्तोष, सुख आदि की अनुभूति करा सकते हैं इन्हें मानसिक या मनोदैहिक मूल्य कह सकते हैं। कुछ अन्य वे उच्च मूल्य हो सकते हैं जो उसके व्यक्तित्व को परिमार्जित करते हैं जिससे उसका जीवन विशिष्ट सार्थकता को प्राप्त कर सके जैसे उदारता, ज्ञानार्जन, सत् प्रवृत्तियाँ आदि। मूल्यों की यही खोज मानवीय अस्तित्व के चरम को खोजने का प्रयास करती है इसे ही आध्यात्मिक मूल्य कहा गया है। वस्तुतः विश्व में मानवीय मूल्यों का तानाबाना इन्हीं उपरोक्त मूल्यों के इर्द गिर्द घूमता रहता है।

Fig. : Pyramidical hierarchal persuasion of needs & values

           प्रस्तुत वर्गीकरण प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक मैस्लो (Abraham Maslow, 1908-1970) के द्वारा प्रतिपादित है।  

          मूल्यों की यह व्यवस्था पिरामिडिकल या सोपानक्रमिक है। अर्थात् सबसे पहले शारीरिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि जीवन के क्रम में मनुष्य करता है। इसलिये यह पिरामिड का आधार में निरूपित है। इसके पश्चात् सुरक्षा, संरक्षा एवं स्थिरता की आवश्यता व्यक्ति के द्वारा तलाशी जाती है। तत्पश्चात् रिश्ते, सम्बन्ध व्यवहार एवं सुख की आवश्यकताओं की खोज एवं पूर्ति की ओर व्यक्ति प्रयासरत होता है। इसके पश्चात् सम्मान, स्टेटस, आइडेन्टिटी को अर्जित करता है। एवं अन्त में आत्मिक मूल्यों या अध्यात्म की ओर अग्रसर होता है। चूँकि इस स्तर तक कम लोग ही पहुँचते हैं ज्यादातर का जीवन मनोदैहिक आवश्यकताओं की पूर्ति तक ही परिसीमित रहता है, इसलिये पिरामिड का आधार सबसे बड़ा तथा शीर्ष छोटा है जो कि संख्या को भी दर्शाता है।

 वैश्विक मूल्य-निर्धारण के आधार 

 वैश्विक मूल्य-निर्धारण के आधार -

(Criterion for Global ness) 

*           प्रथमतया

§                 वैश्विक मूल्य हम तभी कह सकेंगे जब उसमें व्यक्तित्व के सभी पक्षों को सन्तुष्ट करने की क्षमता हो या वह मानव के चरम विकास तक ले जाने में सक्षम हो।

*           द्वितीयतया

§                 जब वह सभी समयों में, सभी के लिये, समान रूप से लागू हो सके बिना किसी भेद-भाव, असमानता या न्यूनता के। इसमें किसी जाति, धर्म, समाज, रूढ़ि, देश आदि के पूर्वाग्रह हों,

*           तृतीयतया

§                 मानव मात्र के कल्याण की बात हो, शान्ति एवं उच्चतर वैश्विक क्रम की स्थापना का लक्ष्य हो। 

आइये अब योग का विश्लेषण करें कि क्या योग उपरोक्त मापदण्डों को कहाँ तक पूरा करता है ?

 

योग के लक्ष्य तथा संभावना

 
 

योग के लक्ष्य तथा संभावना -

(Possibilities within Yoga and Aims) 

योग का लक्ष्य उसकी परिभाषायों से ध्वनित होता है – 

योगश्चित्तवृत्ति निरोधः

समत्वं योग उच्यते

योगः कर्मसु कौशलम् आदि 

योग में समत्व की बात है, कुशलता की बात है। यहाँ चित्तवृत्तयों के निरोध से आत्मस्वरूप में अवस्थित होने को कहा गया है। यम के अन्तर्गत वर्णित सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपिरग्रह एवं ब्रह्मचर्य को पतञ्जलि सार्वभौम स्वरूप का वर्णित किया है अर्थात् ये सभी पर, सभी समयों में समान रूप से लागू होते हैं – 

जातिदेशकालसमयावछिन्नाः सार्वभौमा महाव्रतम्

                                                                      - योगसूत्र, साधनापाद, सूत्र 31 

          हठयोगिक ग्रन्थों में वर्णित विभिन्न योगाभ्यास एवं यौगिक क्रियाएँ स्वास्थ्य के साथ साथ विभिन्न रोगों या व्याधियों का सुलभ, सरल सस्ता एवं आधुनिक दवाओं के विपरीत कारी परिणामों से रहित होता है। वर्तमान में भी योग के प्रति जनाकर्षण एवं रूझान का सबल कारण यही है। चूँकि स्वास्थ्य एवं रोगरहितता देश, काल, जाति, धर्म की परिधि से ऊपर तथा सभी मानवों की समान आवश्यकता है अतः योग अपने इस स्वरूप में भी वैश्विक मूल्य की कसौटी पर खरा उतरता है। 

          योग आध्यात्मिक मूल्यों की परिणति है। जब मानवीय अस्तित्व जागतिक व्यवहारों की ऐषणाओं को त्यागकर अपने अस्तित्व में संयुज्य होना चाहता है वहाँ ही चित्त वृत्ति के निरोध एवं कैवल्य की बात प्रासंगिक एवं सार्थक होती है। इस भूमिका में योग मानवीय अस्तित्व की अन्तिम संभावना अर्थात् आध्यात्मिक मूल्य की भी प्राप्ति कराता है, जो कि धारणा, ध्यान तथा समाधि की परिणति भी है। कहने की आवश्यकता नहीं है कि योग का यह द्वार भी सभी मानवों के लिये समान रूप से खुला है।  

          संयुक्त राष्ट्र संघ (U.N.O.) की वैश्विक संस्था यूनेस्को (UNESCO) ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट में उच्चतर आदर्शों के रूप में “learning : Treasure within” को वर्णित किया है, विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) ने भी अपनी स्वास्थ्य की परिभाषा में आध्यात्मिकता या Spirituality को भी समाहित किया है। 

          इस प्रकार उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर यहाँ कहा जा सकता है कि योग को वैश्विक मूल्य कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा।

 
 

योग की वैश्विकमूल्य के रूप में भूमिका तथा आयाम

 
 

योग की वैश्विकमूल्य के रूप में भूमिका तथा आयाम -

(The Role and dimensions of Yoga as a Global Value)

योग की वैश्विकमूल्य के रूप में भूमिका तथा आयाम को अग्रलिखित तरीके से विश्लेषित एवं विवेचित कर सकते हैं - 

Figure : The Role and dimensions of Yoga as a Global Value 

 

Strategy for Understanding

Strategy for Understanding

 

*     Understanding world

 

§         Why & How

 

*     Notion of Global Value

 

*     Analysis of human personality

 

§         Pyramidical description by A. Meslow

 

*     Criterion for Global ness

 

§         Three criterion

 

*     Yoga fulfilling the criterion ?

 

*     The role and dimensions of Yoga as a Global Value

     
 
 

Authored & Developed By               Dr. Sushim Dubey

&दार्शनिक-साहित्यिक अनुसंधान                      ?  डॉ.सुशिम दुबे,                             G    Yoga

Dr. Sushim Dubey

® This study material is based on the courses  taught by Dr. Sushim Dubey to the Students of M.A. (Yoga) Rani Durgavati University, Jabalpur  and the Students of Diploma in Yoga Studies/Therapy of  Morarji Desai National Institute of Yoga, New Delhi, during 2005-2008 © All rights reserved.