योग
के
लक्ष्य
तथा
संभावना
-
(Possibilities
within Yoga and Aims)
योग
का
लक्ष्य
उसकी
परिभाषायों
से
ध्वनित
होता
है
–
योगश्चित्तवृत्ति
निरोधः
समत्वं
योग
उच्यते
योगः
कर्मसु
कौशलम्
आदि
योग
में
समत्व
की
बात
है,
कुशलता
की
बात
है।
यहाँ
चित्तवृत्तयों
के
निरोध
से
आत्मस्वरूप
में
अवस्थित
होने
को
कहा
गया
है।
यम
के
अन्तर्गत
वर्णित
–
सत्य,
अहिंसा,
अस्तेय,
अपिरग्रह
एवं
ब्रह्मचर्य
को
पतञ्जलि
सार्वभौम
स्वरूप
का
वर्णित
किया
है
अर्थात्
ये
सभी
पर,
सभी
समयों
में
समान
रूप
से
लागू
होते
हैं
–
“जातिदेशकालसमयावछिन्नाः
सार्वभौमा
महाव्रतम्
”
-
योगसूत्र,
साधनापाद,
सूत्र
31
हठयोगिक
ग्रन्थों
में
वर्णित
विभिन्न
योगाभ्यास
एवं
यौगिक
क्रियाएँ
स्वास्थ्य
के
साथ
साथ
विभिन्न
रोगों
या
व्याधियों
का
सुलभ,
सरल
सस्ता
एवं
आधुनिक
दवाओं
के
विपरीत
कारी
परिणामों
से
रहित
होता
है।
वर्तमान
में
भी
योग
के
प्रति
जनाकर्षण
एवं
रूझान
का
सबल
कारण
यही
है।
चूँकि
स्वास्थ्य
एवं
रोगरहितता
देश,
काल,
जाति,
धर्म
की
परिधि
से
ऊपर
तथा
सभी
मानवों
की
समान
आवश्यकता
है
अतः
योग
अपने
इस
स्वरूप
में
भी
वैश्विक
मूल्य
की
कसौटी
पर
खरा
उतरता
है।
योग
आध्यात्मिक
मूल्यों
की
परिणति
है।
जब
मानवीय
अस्तित्व
जागतिक
व्यवहारों
की
ऐषणाओं
को
त्यागकर
अपने
अस्तित्व
में
संयुज्य
होना
चाहता
है
वहाँ
ही
चित्त
वृत्ति
के
निरोध
एवं
कैवल्य
की
बात
प्रासंगिक
एवं
सार्थक
होती
है।
इस
भूमिका
में
योग
मानवीय
अस्तित्व
की
अन्तिम
संभावना
अर्थात्
आध्यात्मिक
मूल्य
की
भी
प्राप्ति
कराता
है,
जो
कि
धारणा,
ध्यान
तथा
समाधि
की
परिणति
भी
है।
कहने
की
आवश्यकता
नहीं
है
कि
योग
का
यह
द्वार
भी
सभी
मानवों
के
लिये
समान
रूप
से
खुला
है।
संयुक्त
राष्ट्र
संघ
(U.N.O.)
की
वैश्विक
संस्था
यूनेस्को
(UNESCO)
ने
हाल
ही
में
अपनी
रिपोर्ट
में
उच्चतर
आदर्शों
के
रूप
में
“learning : Treasure
within”
को
वर्णित
किया
है,
विश्व
स्वास्थ्य
संगठन
(W.H.O.)
ने
भी
अपनी
स्वास्थ्य
की
परिभाषा
में
आध्यात्मिकता
या
Spirituality
को
भी
समाहित
किया
है।
इस
प्रकार
उपरोक्त
विश्लेषण
के
आधार
पर
यहाँ
कहा
जा
सकता
है
कि
योग
को
वैश्विक
मूल्य
कहना
अतिश्योक्ति
नहीं
होगा।
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