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CONTENTS
|योग - सामान्य व्यक्ति, वैज्ञानिक आधारों पर, एवं समाज की दृष्टि में| Yoga - Fundamental health to Spirituality|योग एवं आधुनिक प्रचारक|वैज्ञानिक कसौटी पर खरे उतरा योग एवं अवशिष्ट कार्य|

Yoga & Value - 4

Past Developments and Future Horizon

A cursory survey

अन्य लिंक : | Concept, Definition & Types of Value |Yoga as a Value & Yoga as Practice |Past Developments and Future Horizon|योग – एक वैश्विक मूल्य ||

योग - सामान्य व्यक्ति, वैज्ञानिक आधारों पर, एवं समाज की दृष्टि में

 सामान्य व्यक्ति के लिये योग आसन एवं प्राणायाम का समूह है। इसलिये उसके लिये इसका मूल्य किन्हीं विशिष्ट एवं कठिन तौर पर शरीर के अंगों को हैरतअँगेज तरीके से मोड़ लेना तथा इसका उद्देश्य या तो करतब दिखाना, या स्वास्थ्य लाभ करना होता है। इसप्रकार यहाँ यौगिक अभ्यास वास्तव में जिमनाँस्ट के समान समझे जाते हैं। कुछ आध्यात्मिक समझ रखने वाले के लिये लोगों के लिये योग गूढ़ अभ्यासों एवं रहस्यमयी क्रियाओं का समूह है, जिसके प्रभाव से योगी आध्यात्मिक उपलब्धि को प्राप्त करता है। इस प्रकार यौगिक अभ्यास यहाँ पर रहस्यमयता के दायरे में तथा उनका मूल्य अति गूढ़, गोपनीय  एवं विशिष्टतम् माना गया है।

वैज्ञानिक आधारों पर योग की बात करें तो योग में वर्णित कुण्डलिनी शक्ति आदि के मेडिकल साइंस के अनुसार कोई फिज़ियोलॉजिकल आधार मानव शरीर के शल्यानुसंधान में प्राप्त नहीं होते। यौगिक क्रियायें काफी हद तक वैयक्तिक होती हैं। आब्जक्टिविटी या वस्तुनिष्ठता नहीं होने के कारण इनका वैज्ञानिक पद्धति से प्रमाण की गुंजाइश कम रहती है। पुनः ऑब्जक्टिविटी कम होने से निष्कर्षों में भी वेरिएशन की संभावना अधिक रहती है, अतः वैज्ञानिकों का इसमें इन्टरेस्ट कम हो जाता है।

समाज की दृष्टि से योग तथा यौगिक क्रियाओं को देखें तो समाज वस्तुतः उसी मूल्य को महत्व देता है, जो वैयक्तिक कम तथा सामाजिक अधिक हों। यदि योगसिद्धि से व्यक्ति उदासीन होता है तो समाज की भी ऐसे व्यक्ति में उदासीनता ही होगी। राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर भी कमोबेश सामाजिक स्तर के अनुरूप ही मूल्य पोषित देखे जाते हैं।

         उपरोक्त मानदण्डों एवं तर्कों से विगत् दो दशक से योग का समालोचना एवं उहापोह का शिकार रहा और इस अद्यावधि में भारत में इसका सम्यक् मूल्यांकन नहीं हो पाया। किन्तु विदेशों में इस अवधि में इसका प्रबल प्रचार-प्रसार हु्आ। 60 एव 70 के दशकों से अमेरिका में योग ने लोकप्रियता के नये आयामों को स्पर्ष किया। वहाँ योग ने स्वास्थ्य लाभ के निरोधात्मक (Preventive) एवं प्रदायात्मक (Promotive) अद्वितीय कारक के रूप में प्रतिष्ठा एवं प्रसिद्धि अर्जित की। धीरे-धीरे आधुनिक मेडिकल चिकित्सा के दुष्परिणामों से त्रस्त तथा विभिन्न एक्सरसाइज़ (वेट-लिफ्टिंग, एरोबिक्स, फास्ट स्पोर्ट्स आदि) से उबे तथा निराश लोगों ने भी जब योग की शरण ली तो उन्होंन पाया कि योग के अभ्यास, आरामदायक, स्फूर्तिदायक तथा हृदयतन्त्र पर अधिक कार्यभार डालने वाले स्वरूप के हैं। क्योंकि वेट-लिफ्टिंग के लम्बेसमय के अभ्यास से आगे जाकर जोड़ों के दर्द की समस्या देखी गयी। वहीं ऐरोबिक्स भी स्थूल लोग के लिये उतना आरामदायक नहीं महसूस किया गया, एसोबिक्स हार्टपेशेंट, उच्च रक्तचाप के मरीज के लिये भी अप्रशस्तकर तथा कमजोरों के लिये दुष्कर अनुभवित किया गया। फास्ट स्पोर्ट्स के अपने रिस्क पाये गये, तथा यह खर्चीला भी रहा। यही कारण रहा कि  उपरोक्त एक्सरसाइज़ों के एवज़ में यौगिक अभ्यासों का संक्षिप्तिकरण तथा स्वास्थ्यवर्ज़न (health-version) के प्रति लोगों का रूझान बढ़ता चला गया।

Yoga - Fundamental health to Spirituality

          चूँकि योग का लक्ष्य आधारभूत स्वास्थ्य से अन्तिम अध्यात्म(Fundamental health to Spirituality) तक प्रसृत है, अतः यदि अन्य धर्म के लोग अध्यात्म परक मूल्य अपने अपने धर्म से लेते हैं तो स्वास्थ्यपरकता तो योग से ले ही सकते हैं। अतः योग के वैश्विक करण में अन्तिम अग्राह्यकारकत तत्त्व भी हट गया और इसका कारण यह रहा कि धर्म की निहित कदाचित् रूढ़िवादिता तथा मूर्तिपूजा आदि का कोई विधान योगाभ्यासों में नहीं है। इसमें केवल . के ही जप का विवरण आता है जो कि आध्यात्म मार्ग के गमनार्थियों के परिप्रेक्ष्य से अधिक संदर्भित है। चूँकि ओं भी , एवं का संयुक्ताक्षर है। अतः इसमें भी किसी अन्य धर्मावलम्बी को आपत्ति की भी गुंजाइश कम रहती है। इसलिये योग को अपनाने में धर्म एवं संस्कृति की बाधायें अल्प हुईं।

योग एवं आधुनिक प्रचारक

   योग के आधुनिक प्रचारकों ने भी प्राचीन योगियों की भाँति एकांतपरकता तथा समाजिक उदासीनता के स्थान पर, गतिशीलता, कर्मठता तथा सामाजिक समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता का परिचय दिया। उन्होंने समाज के सभी क्षेत्रों में अपने अवदान एवं योग के प्रतिमान स्थापित किये।। इन योगप्रचारकों केवल अपने अत्यन्त कर्मठ एवं दक्ष होने का प्रमाण दिया, अपितु प्रेम, सहानुभूति, करूणा, भाईचारे एवं विश्वबन्धुत्व का संचार किया। अनेकानेक लोग जो कि नशे की गिरफत में थे तथा अन्य विपरीत मनोस्थितियों के शिकार थे उन्होंने पाज़िटिव जीवन का मूल-मंत्र तथा जीने की नयी दिशा तथा प्रेरणा योग से ग्रहण की। श्री रविशंकर की सुदर्शन क्रिया परक योग, माँ अमृतान्दमयी का आरोग्यकारक आलिंगन तथा बाबा रामदेव के रोगनिरोधक योगाभ्यास इसके जीवन्त उदारहण हैं। इस कारण योग तथा योगियों की आधुनिक समाज अत्यन्त सम्मानजनक प्रतिष्ठा निर्मित हुयी।

      विज्ञान की भी प्रगति से सूक्ष्म यौगिक क्रियाओं के भी अध्ययन के मार्ग खुले। जिन्हें या तो वैज्ञानिक दृष्टि से निरर्थक माना जाता रहा या असम्भव उनके भी वैज्ञानिक आधार मिले। इनसे वे यौगिक क्रियायें जो कि चमत्कार के धरातल पर थीं, वे भी रेशनेलिटी एवं प्रयोग के दायरे में गयीं। यौगिक क्षेत्र में सांइटफिक मैथेडलाँजी के प्रयोग से यौगिक क्रियाओं के उपचारात्मक स्वरूप के प्रकाश में आने से चिकित्सक वर्ग का योग के निश्चित प्रभाव पर विश्वास हुया। आज अनेक डाक्टर्स स्वयं भी योग करते हैं तथा अन्यान्य मरीज़ों को भी योगाभ्यासों का परामर्श देते हैं। आज चुनिंदा योगाभ्यास आर्थोपेडिक, रयूमरेटिक एवं अस्थमैटिक व्याधियों में अन्य पैथियों की तुलना में सर्वाधिक कारगार एवं सटीक उपचार माने जाते हैं। पाचनतन्त्र के विभिन्न डिसऑर्डर के अतिरिक्त आज डायबिटीज़ तथा कैंसर जैसी घातक बीमारियों में भी योगाभ्यास प्रभावकारी पाये जा रहे हैं। विदेशों में आफिस जाने से पूर्व आधे घण्टे के प्राणायाम एवं आसनों के अभ्यास दिन भर शरीर को उर्जावान रखने में अत्यन्त लोकप्रिय अभ्यास तथा फैशन दोनों रूपों में है ही। 

वैज्ञानिक कसौटी पर खरे उतरा योग एवं अवशिष्ट कार्य

   विज्ञान की भी प्रगति से सूक्ष्म यौगिक क्रियाओं के भी अध्ययन के मार्ग खुले। जिन्हें या तो वैज्ञानिक दृष्टि से निरर्थक माना जाता रहा या असम्भव उनके भी वैज्ञानिक आधार मिले। इनसे वे यौगिक क्रियायें जो कि चमत्कार के धरातल पर थीं, वे भी रेशनेलिटी एवं प्रयोग के दायरे में गयीं। यौगिक क्षेत्र में सांइटफिक मैथेडलाँजी के प्रयोग से यौगिक क्रियाओं के उपचारात्मक स्वरूप के प्रकाश में आने से चिकित्सक वर्ग का योग के निश्चित प्रभाव पर विश्वास हुया। आज अनेक डाक्टर्स स्वयं भी योग करते हैं तथा अन्यान्य मरीज़ों को भी योगाभ्यासों का परामर्श देते हैं। आज चुनिंदा योगाभ्यास आर्थोपेडिक, रयूमरेटिक एवं अस्थमैटिक व्याधियों में अन्य पैथियों की तुलना में सर्वाधिक कारगार एवं सटीक उपचार माने जाते हैं। पाचनतन्त्र के विभिन्न डिसऑर्डर के अतिरिक्त आज डायबिटीज़ तथा कैंसर जैसी घातक बीमारियों में भी योगाभ्यास प्रभावकारी पाये जा रहे हैं। विदेशों में आफिस जाने से पूर्व आधे घण्टे के प्राणायाम एवं आसनों के अभ्यास दिन भर शरीर को उर्जावान रखने में अत्यन्त लोकप्रिय अभ्यास तथा फैशन दोनों रूपों में है ही। 

           वैज्ञानिक कसौटी पर खरे उतरे योग ने आज जनसामान्य का भी विश्वास अर्जित किया है। इस प्रकार योग आज एक सार्वजनिक मूल्य के रूप में समादृत तथा स्थापित कहा जा सकता है। विभिन्न विद्यालयों में योगपाठ्यक्रम शरीर-शिक्षण का स्थान ले रहे हैं। किन्तु उच्चशिक्षा में अभी भी योगशिक्षण की स्थिति सुदृढ़ नहीं है। अभी भी हमारे देश में मात्र केवल एक या दो ही योग यूनिर्वसिटी हैं वो भी डीम्ड स्तर की। केवल कुछ विश्वविद्यालयों में ही ह्यूमन कानसेसनेस तथा यौगिक सांइस नाम से डिप्लोमा या/एवं स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम हैं, स्नातक स्तर पर योगपरक पाठ्यक्रमों को अभी भी सम्मिलित किया जाना बकाया है। यद्यपि अनेकों संस्थायें देश एवं विदेश में योगानुसंधान एवं योग के प्रचार-प्रसार की दिशा में कार्यरत् हैं, किन्तु राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सरकार एवं अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं के द्वारा अभी भी योग के क्षेत्र में बहुत कुछ किया जाना अवशिष्ट है।

     
 
 

Authored & Developed By               Dr. Sushim Dubey

&दार्शनिक-साहित्यिक अनुसंधान                      ?  डॉ.सुशिम दुबे,                             G    Yoga

Dr. Sushim Dubey

® This study material is based on the courses  taught by Dr. Sushim Dubey to the Students of M.A. (Yoga) Rani Durgavati University, Jabalpur  and the Students of Diploma in Yoga Studies/Therapy of  Morarji Desai National Institute of Yoga, New Delhi, during 2005-2008 © All rights reserved.