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CONTENTS
|Self-contents - Analysis|What is Content ?|Analysis of content-ness and Psycho-physical constitution|Theories & ism of “Satisfaction”|“Self-Content” in Indian tradition| Strategy for Understanding|

Yoga Psychology - 5

स्व सन्तुष्टि

अन्य लिंक :|Mental Health | मानसिक स्वास्थ्य में योग की भूमिका| मन एवं शरीर का सम्बन्ध| Personality|स्व सन्तुष्टि|शान्ति|

Self-content - Analysis

Self-content

स्व सन्तुष्टि

सर्वप्रथम कार्येच्छा या कार्य करने की इच्छा उत्पन्न होती है। इसके पश्चात् उसके लिये विचार एवं उद्वेलन की प्रक्रिया शुरू होती है। इस उद्वेलन या विचलन के कारण ध्यान एवं चिन्तन उस इच्छा की पूर्ति के उपाय को सोचने लगता है। इसमें विभिन्न साधनों तथा करने की विविध विधियों पर क्रमशः विचार होता है। यदि इच्छा रजस् से समुत्पन्न है तो वह इच्छा तुरन्त ही अपनी पूर्ती का उपाय से अपनी सन्तुष्टि करना चाहेगी। और यदि सतोगुण से प्रभावित है तो अपनी पूर्ति के उपायों पर विचार के साथ भविष्यत्काल में उत्पन्न होने वाले परिणामों एवं प्रभावों पर भी विचार करेगी। इसप्रकार किसी भी स्थिति में उत्पन्न इच्छा अपने पूर्णीकरण के लिये उद्वेलन करती है। कार्य करने को प्रेरित करती है। अब इस कार्य व्यवसाय के दो प्रकार के फल या परिणाम हो सकते हैं

आपेक्षित - आपेक्षित अर्थात् आशा के अनुकूल फल का होना।

अनपेक्षित - अनापेक्षित अर्थात् आशा के प्रतिकूल फल का होना।

सामान्यतया अनुकूल परिणाम उत्पन्न होने पर हम इसे सन्तुष्टि तथा प्रतिकूल परिणाम उत्पन्न होने पर इसे असन्तुष्टि कहते हैं।

अपेक्षा, परिणाम तथा सन्तुष्टि के विभिन्न संयोगों हो सकते हैं। ऐसा भी हो सकता है कि जब प्रतिकूल परिणाम की आशा होने पर भी अनुकूल परिणाम आये और अनूकूल परिणाम की आशा करने पर प्रतिकूल परिणाम आये। वस्तुतः अपेक्षा (expectancy) परिणाम (result) तथा सन्तुष्टि (satisfaction) के निम्न संयोग हो सकते हैं

 

S.N.

अपेक्षा Expectancy

Kinds of Result

सन्तुष्टि

Contentment

Mental Feelings

(Static)

Moods/ Emotions

Mental Feelings

(fleeting)

1.    

आपेक्षित

Expected

अपेक्षा के अनुकूल परिणाम या फल

Desirable results

Yes

सुख

Pleasure

प्रसाद

Happiness

मोह

Fatuation

2.    

आपेक्षित

Expected

अपेक्षा के प्रतिकूल परिणाम या फल

Undesirable results

No

दुःख

Sorrow

विषाद

Grief

मोह,क्रोध

Anger

3.    

अनापेक्षित

Unexpected

अनपेक्षित के अनुकूल परिणाम या फल

Desirable results

No

उदासीनता

Passive

दुःख

Sorrow

मोह मूढ़ता खिन्नता

desperation

4.    

अनापेक्षित

Unexpected

अनपेक्षित के प्रतिकूल परिणाम या फल

Undesirable results

Yes

आश्चर्य

Awesome

सुख

Pleasure

 

 Table : Analysis of expectancy and final generation of Results and varieties of emotions etc.

 

What is Content ?

सन्तुष्टि क्या है

What is Content ?  

सन्तोष मन का एक भाव है जो कि पूर्णीकरण या Satisfaction को दर्शाता है। पूर्णी करण से आशय है कि पूरा होना अर्थात् जैसा सोचा था वैसा ही हुआ। सन्तोष दो शब्दों के मेल से बना है सम् + तोष । तोष से अभिप्राय भरापन तुष्टि । तब सम तोष से अभिप्राय होगा समान रूप से तुष्टि। यहाँ भी समान से अभिप्राय है कि सभी प्रकार से भलिभाँति जैसी अपेक्षा थी या होनी चाहिये उसी के अनुरूप।

Content : Various dimensions

 सन्तुष्टि : विभिन्न आयाम -

Content : Various dimensions

सन्तुष्टि एक वैयक्तिक शब्द है जो कि भावों एवं अनुभूतियों को समाहित करता है। भाव एवं अनुभूतियाँ एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में परिवर्तित हो सकती हैं।

सन्तुष्टि केस स्टडी

उदाहरण - रसगुल्ले को खाने की इच्छा

Case -1

 

रसगुल्ले का मिलना

Situation 1 :- समय पर मिलता है          मानसिक सन्तुष्टि

Situation 2 :- समय पर नहीं मिलता है मानसिक असन्तुष्टि, खिन्नता,

        विचालता, उद्वेग क्रोध आदि

Analysis of Situation 1

समय पर मिलता है किन्तु डायबिटीज़ है तो तात्कालिक मानसिक संतुष्टि परन्तु शारीरिक दुष्प्रभाव से कुछ समय बाद मानसिक-असन्तुष्टि, विकलता। ऐसे में प्रारम्भिक सन्तुष्टि वास्तव में मनोविज्ञान की दृष्टि से सन्तुष्टि तो होगी किन्तु मेडिकल सांइस की दृष्टि से व्यामोह होगी जो कि अपने पूर्णीकरण में तो सुखदायी परन्तु परिणाम में दुःखदायी है।  दर्शन में ऐसी सन्तुष्टि को ही प्रेयस् कहा गया है जो कि श्रेयस् से हटकर हैं।(कठोपनिषत्)

Analysis of Situation 2 –  

संभवतः रसगुल्ले का समय पर नहीं मिलना किसी के लिये तुच्छ विषय हो सकता है। किन्तु मनोविज्ञान की दृष्टि से अपूर्ण इच्छायें अचेतन मन में चली जाती हैं। फ्रायड के अनुसार ऐसी अपूर्ण इच्छाओं के पूर्णीकरण का प्रयास व्यक्ति चेतना के दूसरे स्तर पर स्वप्न आदि में करता है। मनोविश्लषकों (Psychoanalyst) के द्वारा व्यक्तित्व के विघटन तथा पर्सनालिटी के डिसार्डर के लिये ऐसे ही कारक विवेचित किये गये हैं।

 

Analysis of content-ness and Psycho-physical constitution

 
 

शारीरिक संरचनात्मक दृष्टि से मानसिक-सन्तुष्टि का विश्लेषण

Analysis of content-ness and Psycho-physical constitution

 

v     उपरोक्त उदाहरण का ही हम आगे विश्लेषण करेंगे।

Ø      कुछ प्रश्न विचारणीय हैं

§         रसगुल्ले को खाने की ही इच्छा ही क्यों हुयी ?

§         पुनः यह इच्छा कब होगी ?

§         यदि प्रथम बार एक रसगुल्ले से सन्तुष्टि हुयी थी तो आगे भी एक ही रसगुल्ले से सन्तुष्टि होगी ?

उपरोक्त प्रश्न सन्तुष्टि को समझने के आधारभूत प्रश्नों में से हैं।

 

  1. रसगुल्ले को खाने की इच्छा के कारण निम्न हो सकते हैं

Fig : pictorial depiction of causes and generation of results by them

 

 प्रश्न दो एवं तीन का विश्लेषण ग्रुप डिस्कशन के लिये है। अनुचिन्तन तथा आलोचनात्मक चिन्तन पद्धति से विचार विनिमय इसके लिये प्रस्तावित है।

 
 

Theories & ism of “Satisfaction”

 
 

Table : Summarizing the theories & ism of “Satisfaction”, time period and means to achieve

(सन्तोष का ऐतिहासिक सर्वे विभिन्न सिस्टम्स एवं विचारकों के अनुसार)

 

S.N.

Thiker/text /ism/Areas

Time period

Terms

Used for contentment

सन्तोष कैसे ?

How contentment (process) ?

1.

Common man philosophy

Always

Satisfaction

Think,è act è achieve è

be satisfied

 

2.

विलयम के. फ्रेंकेना W.K.Frainkena

19th century

Good Life

Some kind of excellence & Continuity

3.

भगवद्गीता

Gita

500 B.C.

आत्मत्स्थ, स्थितप्रज्ञ

Sthitprajna, Soul

त्याग एवं शान्ति

Renunciationèpeaceèbliss

4.

J.S.Mill

17-18 cent. A.D.

उपयोगितावाद

Utilitarianism

greatest pleasures of greatest numbers (GPGN)

5.

धर्मशास्त्र

Religions

Since evolution

ईश्वर प्राप्ति

शरणागति

devotionèsurrenderingègrace

6.

अर्थशास्त्र

Economics

Since exchange & barter system

Mode, Medium & Money (MMM)

धनèसाधनसम्पन्नताèस्थिरता

Moneyèrichness of mediumsèStabilityècontentment

7.

मनोविज्ञान

Psychology

18-19 century A.D.

Self-satisfaction

समय एवं अवस्था  के अनुसार मनोदैहिक पूर्णीकरण की पूर्ति

Time and stages of lifeè fulfillment accordingly

8.

भारतीय दर्शन

Indian Philosophy

Since wisdom prevailed

आत्मज्ञान

Self-realization

ज्ञान, भक्ति, कर्म  è प्रज्ञा

Knowledge, devotion, action

9.

राजनीति

Politics

Since evolution

राज्य

State

शक्ति, संप्रभुता

Power, sovereignty

10.

समाज

Society

Since society existing

सामाजिक सन्तोष

Social satisfaction

For - Stability, integrity, cohesion, development, consistency

प्रतिष्ठा, सम्मान, स्थिति

Identity è name è fame

Prestige, Honour, Status

 

11.

अस्तित्ववाद

Existentialism

20th cen. A.D.

आन्तरिकता

Subjectivity

realizing life is & life to be

 
 

“Self-Content” in Indian tradition

 
 

विभिन्न परम्पराओं  में - सन्तोष

“Self-Content” in Indian tradition

भारतीय परम्परा में विभिन्न ग्रन्थों में सन्तोष को सबसे बड़ा सुख बताया गया है

लोकोक्ति है सन्तोषी सदा सुखी रहता है।

                  सन्तोषी परमास्थाय सुखार्थी संयतो भवेत्।

                                                                        सन्तोषमूलं हि सुखं दुःखमूलो विपर्ययः ।।

                                          -    मनुस्मृति (IV / 12)

अर्थात्, सुख का मूल सन्तोष है तथा दुःख का मूल विपर्यय अर्थात् मिथ्या दर्शन है। इसी प्रकार महाभारत में कहा गया है कि पिपासा का कोई अन्त नहीं है। इसलिये इसलिये सन्तोष ही परम सुख है।

                                                एवं

                  अन्तोनास्तिपिपासायाः सन्तोषः परम सुखम्।

                                                                        -           महाभारत (वनपर्व / 2 / 46)

बौद्ध दर्शन के अनुसार सन्तोष

Contentment in Buddhism

बौद्ध दर्शन के संस्थापक महात्मा बुद्ध ने दुःखों का मूलकारण तृष्णा को बतलाया है। तृष्णा के क्षय या शमन से ही निर्वाण की अवस्था सम्भव बतलायी है। यदि सन्तोष की स्थिति बौद्ध दर्शन के विश्लेषण में देखेंगे तो यह एक प्रकार से तृष्णा से निर्वाण के मध्य सेतु का काम करती है। आध्यात्मिक दृष्टि से बात करें तो जब तृष्णा नियन्त्रित होती है। तब सन्तोष का उदय होता है। तब ही निर्वाण संभव होता है।

योगसूत्र सन्तोष -

Yogasutra : Self-content

योगसूत्र में सन्तोष को नियमों के अन्तर्गत व्याख्यायित किया गया है। नियमों से तात्पर्य है कि नियमन करने वाले, नियन्त्रण करने वाले (Regulating factor)। ऐसे नियमन करने वाले पाँच कारक महर्षि पतञ्जलि के अनुसार पाँच हैं, जिनमें सन्तोष दूसरे क्रम पर वर्णित है शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय एवं ईश्वरप्रणिधान

शौचसंतोषतपःस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमाः।

                           - योगसूत्र, साधनापाद, 32

योगसिद्धि के लिये पथ के कारक प्रथम शुद्धता शुचिता एवं पवित्रता हैं। तत्पश्चात् साधक के लिये सन्तोष व्याख्यायित किया गया है। सन्तोष के फल के सम्बन्ध में कहा गया है

सन्तोषाद् अनुत्तम सुखलाभः।

                           - योगसूत्र, साधनापाद, 42

अर्थात् सन्तोष से अतुलनीय सुख लाभ होता है।

भगवद्गीता में सन्तोष

Bhagavadgīta – Self-Content

भारतीय मनोविज्ञान का प्रतिनिधिक ग्रन्थ भगवद्गीता मनोस्थितियों तथा आध्यात्मिकता का सुन्दर विश्लेषण तथा संश्लेषण प्रस्तुत करता है। गीता कामनाओं को आवर्तनीय स्वरूप का बतलाया गया है। काम तथा क्रोध को मानव का सबसे बड़ा शत्रु निरूपित किया गया है। गीता आध्यात्मिक सुख को महत्व देती है। आध्यात्मिक सुख से तात्पर्य है ऐसी स्थिति से जो कि स्वयं में परिपूर्ण है। यद्यपि गीता में सन्तोष यह शब्द नहीं प्रयोग हुया है, तथापि गीता में आत्मस्वरूप एवं स्थितप्रज्ञ के आदर्श को महत्व दिया गया है। यह समस्त कामनाओं की तुष्टि की स्थिति तथा नैष्ठिक परम शान्ति की स्थिति के रूप में वर्णित की गयी है। इसके मध्यवर्ती के रूप में सन्तोष आवश्यक घटक के रूप में वर्णित किया गया है।

 
 

Strategy for Understanding

 
 

Strategy for Understanding

 

 

*    Concept of Self-content

 

 

*      Psychological understanding –

 

·        desires, incumbency, emotions, feelings, moods

·        Expectancy, favourable & unfavourable results

·        Two results of expectancy

·        Analysis of Results and resultant emotions

 

*      What is Content-ness

 

·        Definition

·        Various dimensions of Content-ness

·        Case study

·        Variations in content-ness according to Psycho-physical constitution

 

*      Content according to traditions/thinkers

 

·        Indian tradition - Cursory view

·        Buddhism

·        “Content” according to Yoga Sūtra of Patañjali

·        “Content” according to Bhagavadgīta

 

*      Understanding “Content” & Arrival to “Self-content”

 

·        Content is precursor to stability, integrity and satisfaction

·        Self-content is presumed state for/of spirituality

 

 
     
 
 

Authored & Developed By               Dr. Sushim Dubey

&दार्शनिक-साहित्यिक अनुसंधान                      ?  डॉ.सुशिम दुबे,                             G    Yoga

Dr. Sushim Dubey

® This study material is based on the courses  taught by Dr. Sushim Dubey to the Students of M.A. (Yoga) Rani Durgavati University, Jabalpur  and the Students of Diploma in Yoga Studies/Therapy of  Morarji Desai National Institute of Yoga, New Delhi, during 2005-2008 © All rights reserved.