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|शान्ति क्या हैं ?|शान्ति
क्यों आवश्यक है ?|शान्ति का आधार क्या है|भाव,
बोध, दृष्टि, गुण, उद्भवात्मक स्रोत,.... दर्शन|
गीता और शान्ति|Tranquillizer
drugs|Strategy for Understanding|
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Yoga Psychology - 6
शान्ति Tranquilizing Effects
अन्य लिंक
:|Mental Health |
मानसिक स्वास्थ्य में योग की भूमिका|
मन एवं शरीर का सम्बन्ध|
Personality|स्व
सन्तुष्टि|शान्ति| |
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शान्ति
क्या
हैं
? |
शान्तकारक प्रभाव
(Tranquilizing Effects)
सृष्टि के आदि से मनुष्य की दो खोजों
रही हैं – सुख एवं शान्ति
इन्हीं दो की खोज में जो आगे मिले वो थे समृद्धि एवं शक्ति।
ओल्डटेस्टामेंट, हिन्दू मान्यता
के पौराणिक ग्रन्थ तथा अन्य स्रोतों के अनुसार सृष्टि के आरम्भ में महानवृष्टि हुयी
तथा सभी कुछ जब आप्लावित था। वृष्टि के शान्त होने पर तथा जल के कम होने पर सृष्टि
आगे बढ़ी। उपनिषदों के अनुसार तज्जलान् शान्त उपासीत –
अर्थात् सब कुछ उस ब्रह्म से ही उत्पन्न हुया है एवं उसमें ही शान्त होता है।
इसलिये उस ब्रह्म की उपासना करनी
चाहिये। वैज्ञानिक दृष्टि से भी विचार करें तो चार्ल्स डार्विन के विकासवाद के
अनुसार जीवन का विकास हुया एक परिस्थित में जीव के, अशान्त होने से तब उस जीव ने
अपने शान्त होने का सुख का रास्ता ढूढ़ा, संघर्ष किया तथा परिस्थिति में अपने आप को
समायोजित किया। यही प्रकिया विकासवाद का आधार रही है। (Struggle for
existence and Survival of the fittest)।
मानव मस्तिष्क भी इसी तरह कार्य
करता है। जब भी कभी कोई बात इसमें समस्या के स्तर से प्रवेश करती है, यह अशान्त
होता है अर्थात् अपनी पूर्वावस्था में नहीं होता है, चिन्तन, मनन की प्रक्रिया गहन
प्रमास्तिक में सतत् चलती रहती है और अपनी इस प्रक्रिया से मस्तिष्क समाधान खोज
निकालता है। तब सुख अनुभूत होता है। स्थिरता अनुभूत होती है। और तब शान्ति अनुभूत
होती है। यहीं जीव के अस्तित्व की यात्रा कुछ विराम लेती है। अस्तित्व परकता होती
है। जीव अपने संवर्धित स्वरूप की झांकी लेता है।
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शान्ति क्यों आवश्यक है
? |
शान्ति क्यों आवश्यक है ?
(Why the Peace is necessary)
जैसे विशाल एवं अथाह समुद्र में चलते
हुये जहाज को कहीं तो लंगर डालना पड़ता है,
जैसे दिन भर उड़ते हुये पंछी को कहीं
तो बसेरा करना ही पड़ता है,
वैसे ही जीव को भी अपने अस्तित्व की
यात्रा में कहीं तो स्थिरता चाहिये पड़ती है यह स्थिरता परक स्थिति ही - शान्ति है
।
वृहदारण्यक
उपनिषत् में पंछी का उद्धहरण आता है। यहाँ पंछी अपनी मनोदशा व्यक्त करता
हुया कहता है कि वह सम्पूर्ण दिवस एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष पर उड़ता रहा, एक शाखा
से दूसरी शाखा पर जाता रहा। और इसमें ही उसका सारा समय, श्रम तथा ऊर्जा निस्सरित
हुयी। अब वह पंछी ऐसी चाह व्यक्त करता है जहाँ उसकी यह शाख से शाख की थकान उतरे तथा
स्थाई बसेरा हो। यहाँ पंछी से आशय जीव से है तथा एक शाख से दूसरी शाख की यात्रा
उसका संसार में विभिन्न योनियों में संसरण है। इस प्रकार यहाँ जीव की यात्रा की
समाप्ति आत्म में अवस्थित होने पर संभव बतलायी गयी है।
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Interpretation of Peace in Various
भाव, बोध, दृष्टि, गुण,
उद्भवात्मक स्रोत |
शान्त से आशय |
S.N. |
दृष्टि /
परिणति/..आदि |
भाव,
बोध, दृष्टि, गुण, उद्भवात्मक स्रोत,.... दर्शन तथा दार्शनिक |
1. |
भावनात्मक
दृष्टि से
शान्ति |
जब विकलता न
हो, विह्वलता न हो, व्याकुलता न हो, विचलन न हो, उद्वेलन न हो वैमनस्य न हो,
विकार न हो, बैचनी न हो, विचार की उथल-पुथल न हो, परिवर्तन न हो |
2. |
मन के निग्रह
की दृष्टि से
शान्ति |
तृष्णा न हो,
लालच न हो, लोभ न हो, कामना न हो, इच्छा अवशिष्ट न हो
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3. |
निषेधात्मक
शान्ति |
जहाँ
कामनाओं की कड़ियाँ न हों, अवसादों की पीड़ायें न हो शान्ति ऐसा सुरम्य स्थल है
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4. |
स्वीकारात्मक
दृष्टि से
शान्ति |
स्थिरता हो,
एकरूपता हो, गम्भीरता हो, भावनात्मक सबलता हो, विचारों की समानता हो, व्यवहारिक
दृढ़ता हो-(मनोवैज्ञानिक अवस्थिति) |
5. |
अभिव्यक्ति परकता
की दृष्टि से
शान्ति |
स्पष्टता हो,
आर्जव हो, मुदिता हो, करूणा हो, सुखमयता हो, उच्च मानवीय गुणों की अभिव्यक्ति
हो-(सभी धर्मशास्त्र एवं नीतिशास्त्र)
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6. |
उदात्तता
की दृष्टि से
शान्ति |
देवत्व हो,
विवेक हो-(सांख्य), वैराग्य हो-(योग),
निष्काम कर्म हो-(गीता) |
7. |
अनुबोध
की दृष्टि से
शान्ति |
आस्तित्व
परकता हो, आत्मस्वरूता हो, कैवल्य हो, निर्वाण हो-(बौद्ध
दर्शन), आध्यात्मिकता हो, मोक्ष हो-(भारतीय
दर्शन), आनन्द हो(वेदान्त),
तुर्यावस्था हो-(माण्डूक्य उपनिषद्),
अपवर्ग हो-(न्याय दर्शन), निःश्रेयस
हो-(मूल्यों की अन्तिम क्रम), मुक्ति
हो-(श्वेताश्वतर उपनिषत्)
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8. |
परिणति
की दृष्टि से
शान्ति |
निर्बीज समाधि
हो-(पतञ्जलि), स्थित-प्रज्ञ में
परिणति हो-(गीता), बोधिसत्व में
परिणति हो-(महायान बौद्ध-मत), केवली
हो-(श्वेताम्बर एवं दिगम्बर
जैन दर्शन),
मुनि हो-(जैन दर्शन, गीता एवं
उपनिषत् भी)
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क्षय
की
दृष्टि से
शान्ति |
त्रिविध-दुःखो
से निवृत्ति हो, तापत्रय का क्षय हो, पंच क्लेश न हों, सत् रजस् तमस् गुणों की
साम्यावस्था हो, समस्त कर्मों का क्षय हो, |
9. |
प्राप्तव्य
की दृष्टि से
शान्ति |
त्रिरत्न
युक्त हो-(जैन दर्शन), पंचशील-(बौद्ध
दर्शन) प्राप्त हो चुके हों, पंचमहाव्रतों की परिपूर्णता हो
|
10. |
उपलब्धि
की दृष्टि से
शान्ति |
प्रज्ञा हो,
सायुज्ज्य हो-(रामानुजाचार्य),
विशुद्ध-चैतन्य अवस्था हो-(उपनिषद्),
नवधाभक्ति की अन्तिमावस्था हो-(पुराण),
जीवन मुक्ति हो विदेह मुक्ति हो
|
11. |
तदाकारता
की दृष्टि से से
शान्ति |
समाधि की
दशभूमियों की अन्तिमावस्था हो-(महायान बौद्ध),
चित्त की एकाग्र भूमि हो-(व्यासभाष्य-योग),
प्रज्ञानघनमयता हो -(तैत्तरीय उपनिषत्),
ब्रह्मानुभूति हो, आत्मबोध हो-(शंकराचार्य),
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12. |
अवस्था
की दृष्टि
शान्ति |
अहं
ब्रह्मास्मि हो, अयमात्मा ब्रह्म हो, तत्त्वमसि हो, सर्वं खल्विदं ब्रह्म
हो
(उपनिषत्)
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13. |
अनुभूति
की दृष्टि
शान्ति |
सत् चित्
आनन्द की अनुभूति हो (उपनिषत्)
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शान्ति का आधार क्या है
? |
शान्ति
का आधार क्या है ?
Basis of Peace
वस्तुतः सुख का आधार शान्ति है।
परन्तु शान्ति का आधार क्या है ?
शान्ति अपने श्रेणी क्रम में शीर्ष पर
आती है तथापि आधार के रूप में भी बात करें तो यह आधार में भी आवश्यक होगी। यदि इसका
पिक्टोरियल रिप्रेसन्टेशन किया जाय तो शान्ति का चित्रण अधोलिखित हो सकता है
–
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गीता और शान्ति |
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गीता
और शान्ति
Peace
and Tranquilization of Mind according to Gita
गीता में
शान्ति का सविस्तार विवेचन किया गया है –
गीता में लगभग
14 बार शान्त शब्द का प्रयुक्त हुया है।
नास्ति
बुद्धिरयुक्तस्य
न चायुक्तस्य भावना ।
न चाभावयतः
शान्तिरशान्तस्य
कुतः सुखम्।।
आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत्।
तद्वत्कामा यं
प्रविशन्ति
सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी।।2
/70
विहाय कामान्यः
सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः।
निर्ममो निरहङ्कारः स
शान्तिमधिगच्छति।। 2 / 71
श्रद्धावाँल्लभते
ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां
शान्तिमचिरेणाधिगच्छति।।
4 / 39
युक्तः कर्मफलं
त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठकीम्।
अयुक्तः कामकारेण फले
सक्तो
निबध्यते।।
5 / 12
भोक्तारं यज्ञतपसां
सर्वलोकमहेश्वरम्।
सुहृदं
सर्वभूतानां
ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति।।
5 / 29
जितात्मनः प्रशान्तस्य
परमात्मा समाहितः।
शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा
मानापमानयोः।। 6 / 7
अहंकारं बलं दर्पं
कामं क्रोधं परिग्रहम्।
विमुच्य निर्ममः
शान्तो
ब्रह्मभूयाय कल्पते।।
18 / 53
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Tranquillizer drugs |
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शमनात्मक औषधियाँ
(Tranquillizer
drugs
)
What is Tranquillizer drug :
Drug that is used to reduce anxiety, fear, tension, agitation, and related
states of mental disturbance.
Two Types of Tranquillizer :
-
Major tranquilizers,
which are also known as antipsychotic agents, or neuroleptics, are so called
because they are used to treat major states of mental disturbance in
schizophrenics and other psychotic patients.
-
Minor tranquilizers,
which are also known as anti anxiety agents, or anxiolytics, are used to treat
milder states of anxiety and tension in healthy individuals or people with
less serious mental disorders.
Effects of Tranquilizers
:
These drugs have a calming effect and eliminate
both the physical and psychological effects of anxiety or fear.
Besides the treatment of anxiety disorders, they
are widely used to relieve the strain and worry arising from stressful
circumstances in daily life.
Benzodiazepines are among the most widely
prescribed drugs in the world. Benzodiazepines work by enhancing the action of
the neurotransmitter gamma-aminobutyric acid (GABA), which inhibits anxiety by
reducing certain nerve-impulse transmissions within the brain.
Some others are : diazepam(Valium),
chlordiazepoxide (Librium), and alprazolam (Xanax).
Side effects: sleepiness,
drowsiness, reduced alertness, and unsteadiness of gait.
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Strategy
for Understanding |
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Strategy for Understanding
Tranquilizing Effects–
Notion of
Tranquilizing –
§
General Understanding
of the Concept
§
Peace, Tranquility
and Tranquilization
§
Why the Peace is
necessary
§
Seat of Peace
Process & Means of
Tranquilizing –
§
Psychological :
§
Self-understanding,
actuality and acceptance
§
Avoidance of
confrontation, Falsehood
Spiritual : Vedic
§
Upanishadic Shanti
Patha,
§
Other Vedic Hymns and
Prayer for Tranquilization of Nature, Other beings and Cosmos
Spiritual :
Vedantic
§
Tranquilizing vs.
submerging to the Universal Self
Gita :
§
Karma Yoga
and Nishkama Karma
§
Devotion and offering
every action to God
§
Jnana or realization
of Reality
Medical : Drugs
§
to reduce the
anxiety, fear, tension, agitation, and related states of mental disturbance
§
Neurosis, Psychosis
§
Major Tranquilizers
o
antipsychotic
agents, or neuroleptics,
o
schizophrenics
§
Minor tranquilizers
o
anti anxiety
agents, or anxiolytics
o
milder states of
anxiety and tension in healthy individuals
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