Yoga & Religion
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Yoga is different from religion. It is not the
sectarian practice. While the religion is confined to any particular cast, creed
or by national boundaries.
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It is not now confined to any cult or creed.
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It is more way of healthy life, peace-full life.
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योग रिलिजन
नहीं है। यह किसी भी प्रकार की पूर्वमान्यता,
कट्टरता एवं विशिष्ट पूजा अर्चना की विधी नहीं देता है।
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यम,
नियम, आसन,
प्राणायम, प्रत्याहार,
धारणा, ध्यान,
समाधि पर आधारित योग(अष्टाङ्ग योग) चित्त वृत्तियों के निरोध तथा कैवल्य या मोक्ष
की प्राप्ति की ओर अग्रसर कराता है
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योग वैज्ञानिक
पद्धति है - इसकी क्रिया विधी
वैज्ञानिक दृष्टिकोण को रखकर चलती है। इसको कोई भी करके समान रूप से अनुभति प्राप्त
कर सकता है। इसका सरल अनुभव आसनों प्राणायम में दिखायी देता है। इसी विशिष्ट
विज्ञान के चलते यह योग विधी समस्त विश्व में अधिकाधिक लोगों द्वारा अपनाया जा रहा
है।
Yoga : A Universal Value
योग वैश्विक मूल्य
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In the 20th century, the philosophy and practice
of Yoga became increasingly popular in the West. The first important
organization for practitioners in the United States was the
Self-Realization Fellowship, founded by Paramahansa Yogananda in 1920. Some 50
years later, instruction emphasizing both the physical and spiritual benefits of
Yogic techniques was available through a wide variety of sectarian Yoga
organizations, nonsectarian classes, and television programs in the United
States and Europe.
Conclusion:
इस प्रकार हम योग को विशुद्ध
वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित आत्मानुभूति की विधि कह सकते हैं जिसका उद्देश्यों में
सम्पूर्ण स्वस्थ जीवनचर्या से लेकर मानवमात्र के कल्याण, शान्ति तथा सौहार्द्र के
भाव समाहित हैं।
In the light of
above description, it can be asserted that the Yoga is a scientific method of
health & peace of body and mind. It does not appeal for any sectarian division.
It aims good-for-all. Therefore it may be asserted as “A Universal Value”
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