-Concise Encyclopedia of Yoga

That all what you wanted to know about Yoga!

Yogic concepts Traditions Ancient Texts Practices Mysteries 

   
Root Home Page
Index

About Yoga

Yoga Practices & Therapy
Yoga Sutra & commentaries
Yoga Schools
Traditional Texts of Yoga
Yoga Education
Modern Yogis
Yogic Concepts
Yoga Philosophy
Yoga Psychology
Yoga & Value
Yoga & Research
Yoga & Allied Sc.
Yoga & Naturopathy
List of all Topics
 
 
     
CONTENTS
|पतञ्जलि-योग|Yogic Practices - Final attainment, Name, stages|

योग के प्रकार - 1

पतञ्जलि योग

अष्टाङ्ग योग

अन्य लिंक : पतंजलि योग | हठयोग | मन्त्र योग | लय योग |कर्म योग|ज्ञान योग|| भक्तियोग | ध्यानयोग |

पतञ्जलि-योग

पतञ्जलि-योग

(Analysis of Yoga as a Value & Yoga as Practice) 

          पतञ्जलि योग सूत्र में योग की परिभाषा योगश्चित्तवृत्ति निरोधः के रूप में की गयी है अर्थात् योग (या योग की प्राप्ति) चित्तकी वृत्तियों के निरोध से है (होती है) तथा इस निरोधावस्था की प्राप्ति अभ्यास तथा वैराग्य से सम्भव बतलायी गयी है।  

          महर्षि पतञ्जलि के अनुसार इन चित्त वृत्तियों के निरोध से उत्पन्न होने वाला मूल्य कैवल्य की अवस्था है जो कि पुरुष का वास्तविक स्वरूप भी है। चित्त वास्तव में स्फटिक मणि के सदृश्य स्वच्छधवलनिर्मल स्वरूप है परन्तु वृत्तियों के परिणाम स्वरूप यह उस दर्पण की भाँति होता है जो कि अपने आस-पास की समस्त वस्तुओं को प्रतिबिम्बित करता है, और इस रूप में वह दर्पण वास्तव में वस्तुमय या वस्तु के प्रकार का ही दिखायी देता है। किन्तु जब आस-पास की समस्त वस्तुओं रहें तब वह दर्पण अपने निज स्वरूप की अभिव्यक्ति करेगा कि प्रतिबिम्ब की इसी प्रकार वृत्ति निरोध से शुद्धावास्था या शुद्धचैतन्यावस्था वर्णित की गयी है। यही योग की परिभाषा योग चित्तवृत्ति का निरोध है की सार्थकता है। चूँकि यहाँ केवल चित्त मात्र ही है अतः इसे कैवल्य प्राप्ति या कैवल्य की अवस्था भी कहा गया है। 

          इस प्रकार कैवल्यावस्था, आत्म स्वरूप की अवस्था शुद्ध स्वरूप की अवस्था है। चूँकि योग में इसी आत्म रूप को प्राप्त करना है अतः स्पष्ट है कि पतञ्जलि-योगसूत्र के अनुसार परममूल्य आध्यात्मिक है तथा इनकी प्राप्ति के लिये जो-जो करने को कहा गया है वे सभी अभ्यास या क्रियाएँ हैं।  

          पतञ्जलि योगसूत्र में कम से कम तीन स्तर के अभ्यासों या क्रियाओं का वर्णन मिलता है – 

S.

No.

Yogic Practices

Final attainment

Value

Name

of

Yoga

Stages of Practitioners

 

Comments

1.

अभ्यास एवं वैराग्य

Abhyas & Vairagya

चित्तवृत्ति निरोधः

योग

उत्तम

यदि केवल अभ्यास एवं वैराग्य आवश्यक हैं तो साधक उत्तम है

2.

तप, स्वाध्याय एवं ईश्वरप्रणिधान

Tapa, Svadhyaya and Ishwar Pranidhana

 

क्रियायोग

 

मध्यम

 

यदि तप, स्वाध्याय ईश्वरप्रणिधान भी उपरोक्त के साथ आवश्यक हैं तो साधक माध्यम है।

3.

यम, नियम, आसन, प्राणायम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि

Yama, Niyam, Asana, Pranayama, Pratyahara, Dharana, Dhyana and Samadhi

समाधि

अष्टांग योग

 

अधम

 

यदि उपरोक्त दोनों के साथ अष्टांग योग आवश्यक हैं तो साधक अधम

है।

 Table : depicting Yogic practices, their status, final attainment, and name of Yoga

in

Patańjali Yoga Sutra

     
 
 

Authored & Developed By               Dr. Sushim Dubey

&दार्शनिक-साहित्यिक अनुसंधान                      ?  डॉ.सुशिम दुबे,                             G    Yoga

Dr. Sushim Dubey

® This study material is based on the courses  taught by Dr. Sushim Dubey to the Students of M.A. (Yoga) Rani Durgavati University, Jabalpur  and the Students of Diploma in Yoga Studies/Therapy of  Morarji Desai National Institute of Yoga, New Delhi, during 2005-2008 © All rights reserved.